Monday, December 22, 2014

इतना आसान भी नहीं होता




इतना आसान भी नहीं होता                          
 

टूट कर जुड़ जाना 

 
 
बिखर कर सिमट जाना
 
 

उजड़ के बस जाना 
 

इसके लिए चाहिए एक लम्बी उम्र                  


और इतनी उम्र अब बची कहाँ ?      



                        पारुल सिंह 

Thursday, December 4, 2014

खिड़कियाँ

नए मौसमों की दस्तक 
जब भी देती हैं हवाएँ 
मेरे कमरे की खिड़कियाँ 
सिमट कर कुछ और 
भिड़ जाती हैं। 
गली,मौहल्लों में खुलने वाली खिड़कियाँ 
बंद ही रखी जाती हैं। 
सदियों से। 
                            पारुल सिंह 

Monday, December 1, 2014

अच्छा ठीक है

1. 

बर्फ से गुजर कर आई सी
ठण्डी आह के साथ
दोनो हाथ मजबूरी मे टिका कर
थोड़ा गर्दन को झुका कर
हम कह तो देते हैं
किसी के छोड़ जाने से पहले

"अच्छा ठीक है,
जो तुम कहो,
जैसा तुम चाहो,
जो मर्जी तुम्हारी "

पर किस तरह मर-मर कर
झेलता है तन-मन
किसी के जाने के बाद
उसका जाना,
उसका कहना,
उसका चाहना,
उसकी मर्जी ।

जब रिश्ते मे आने का फैसला
दोनों का होता है
तो वापस जाना,
कब क्या कहना है,चाहना है,
ये मर्जी क्यूं किसी एक की ही होती है?

क्या कभी अहसास होता है जाने वाले को
कि किस तरह कँहा-कँहा से
क्या-क्या  ठगा गया,ये कहने  वाले का?

"अच्छा ठीक है,
जो तुम कहो,
जैसा तुम चाहो,
जो मर्जी तुम्हारी ".....
पारुल सिंह

2 . 
जिस तरह बेआवाज चले आए थे
वैसे ही बेआवाज चल दिये हो तुम जिन्दगी से
बहुत कुछ मुझे देकर,
मगर जो चल दिये लेकर,
उसका अफसोस सलीके से तुम्हें याद भी नही करने देता। 

.....चली आई हूँ तुम्हारे पीछे
वापस लौट चलने की मिन्नतें करने नही,
अपने विश्वासों की पोटली छीन लेने
तुम ले आए थे बगल मे दबाकर जिसे
तरह तरह के विश्वासों भरी पोटली
रिश्तों,लोगों,बातों,परिभाषाओं और 
सब से बढ़ कर,मेरा खुद पर विश्वास
सब ही तो ले चले थे तुम। 

......अब जाओ करो,जो चाहो
मैने लाकर,आँगन मे,चूल्हे के पास
खूंठी पर टांग ली है वो पोटली
जब जिस सफर पर निकलूँगी
साथ ले चलूंगी अपने विश्वास 
बहुत लेन-देन करना है अभी
जिंदादिली और खुशियों का। 

मुझे फिर से करना है
रिश्तों,लोगों,बातों,परिभाषाओं
और सब से बढ़ कर खुद पर विश्वास
पारुल सिंह

Tuesday, October 28, 2014

किरणें..



अम्बर पर रहने वाली किरणें
दबे पावं धरती पर आईं हैं
ओढ ओस की झिलमिल चुनरी
उस पर कुहासे की गोट सजाईं है

फैल रही हैं कण-कण पर
उत्साहित मृदुल भोर लिए
शिथिल गात फूलों,पत्तों के
पुलकित हैं आलोकित नयन लिए

कोयल के पंचम स्वर का संगीत
स्वच्छंद मुखरित है जल थल पर
अठखेलियाँ लहरों से किरणों कीज्यूं
हैं नृत्यमगन प्रेयसी पीह आगत पर

तिमिर ब्रह्मांड से मिटाने हेतु
दिवाकर की अनुकम्पा आईं हैं
माना है ये अभिसार अस्ताचल तक
किन्तु प्रत्येक रात्रि उपरांत भोर आईं हैं
                      पारुल सिंह 

Tuesday, September 23, 2014

बहुत जी चाहता है।


सुन रहे हो,
कई बार मन करता है। 
बहुत जी चाहता है। के,
दुनिया की सारी 
व्हील चैयर्स के पहियों को
पैरों में तब्दील कर दूँ।
तेज दौड़ने वाले पैरों में,
और लगा दूँ उन सब को
जो बैठे हैं उन कुर्सियों पर
कहूं, जाओ भागो, दौड़ो,
खड़े होकर कैसी दिखती है
ये दुनिया देखो।
चलने से रगो में कैसा
महसूस होता है लहू महसूसों।

कई बार मन करता है।
बहुत जी चाहता है। के,
बिन बाँहों के जो लड़ रहे हैं दुनिया से
और जो निसक्त पड़े हैं बिस्तरों पर
उन्हें लताओं की बांहें दे दूँ,
मोगली की फुर्ती दे दूँ,
और कहूं जाओ,
अब हो जाओ गुत्थम गुत्था
खूब खेलो कराटे,
चख कर देखो अपने हाथ से
मुँह में निवाला डालने का मज़ा।

कई बार मन करता है।
बहुत जी चाहता है। के,
वो जिनमे कम है अक्ल,कहते हैं हम,
उन्हें थोड़ी मेरी, थोड़ी तुम्हारी
थोड़ी इसकी, थोड़ी उसकी
चुटकियाँ भर-भर अक्ल दे दूँ
कहूं के देखो अपने ही सहारे
जीने का मज़ा क्या होता है,
अपने काम खुद करना
कितनी तस्सली देता है।देखो।
अकेले अपने फैसले लेकर,
अकेले रहकर,घूमकर, जीकर।देखो।
और वो जो थोड़ी सी साजिशें,गोलमाल,
झूठे वायदे,दुनिया खत्म करने के इरादे,
हम करते हैं तुम सब भी करो यारों।

मेरा बहुत मन करता है।
सच बहुत जी चाहता है।
पर मैं कुछ भी नहीं कर पाती।
झूठ कहते थे तुम कि
" तुम सब कुछ कर सकती हो"
देखो। मैं कुछ नहीं कर सकती।
झूठे हो तुम।



                             पारुल सिंह

Friday, September 5, 2014

पुस्तक परिचय : "कुछ फ़ूल अमलतास के" कवियत्री : सर्वजीत 'सर्व'

क्या तुमने कभी मेरी तरह शबनम के मोती दोनों हाथों में समेटे हैं ?  
क्या तुमने कभी बूंदों का हाथ पकड़ बादलो तक पहुँचना चाहा है ?
क्या तुम्हे भी सावन में मेरी तरह अपना बचपन याद आया है ?

सुप्रसिद्ध कवियत्री सर्व जीत सर्व जी की लिखी ये पंक्तियां पढ़ कर क्या आपको भी अपना बचपन याद आया है? ये पंक्तियां सर्व जी की पुस्तक  "कुछ फूल अमलतास के " से ली गयी उनकी एक बहुत खूबसूरत कविता की हैं। "कुछ फूल अमलतास के " सर्व जी का कविता संग्रह हैं। 
सर्व जी को नरम और नाज़ुक शब्दों से रेशमी भावों  का ताना बुनने में महारथ हासिल हैं जब भी आप उन्हें पढ़ते हैं तो आप इन्हीं भावों की गलियों से गुजरते हैं  जो कि आपके ह्रदय और आत्मा को अंतर तक तृप्त और प्रफुल्लित कर देतें हैं। 
                                 
आज धूप खिलखिलाती हुई आई 
आँचल में हरसिंगार के कुछ फूल समेटे,
तो मैंने दोनों हाथ फैलाकर समेट लिया 
इन फूलो में बसी ,सौंधी-सी महक को, 
जो शायद आज तुम्हारे आने का पैग़ाम ले कर आई हैं 

सर्व जीत सर्व दिल्ली के साहित्यिक जगत का एक जाना माना नाम है। "कुछ फूल अमलतास के " के अलावा सर्व जी की तीन और पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। "मैं गजल बनूँ तुम्हारी " ,"त्रिअंजलि " और "किमख़ाब सी ये जिंदगी" । 

सर्व जी की कविताएँ चाँद सितारों ,बाग़ ,बहारों से अपने बचपन का पता पूछती हैं तो कंही बूढ़े सूरज से अपनी खुशिओं और सपनो की पोटली थामती हैं, तो कंही बड़ी सुहानी सी सुबहों का स्वागत करती हैं। 

सुबह सुबह जब भी खिड़की पर एक धीमी-धीमी सी दस्तक होती है ,
तो समझ जाती हूँ मैं की धूप की नन्ही किरण है, जो कुछ शर्माती ,
सकुचाती और मुस्कुराती है मेरे आँगन में, 
नए सवेरे को साथ ले  
एक और उम्मीदों भरे दिन को पहुँचाने आई है। 

सर्व जी की कवितायें हमे कभी रिश्तों के आसान सफर पर ले चलती हैं तो कंही कंही रिश्तों की ऊबड़ खाबड़ ज़मीन भी है। स्त्री मन की सभी संवेदनाएं , दर्द ,अनकहे शिक़वे और समझौते भी यें कवितायें बहुत अच्छे से बयान करती हैं। 

एक रिश्ता निभाना होता है
और एक होता है रिश्ते को जीना, 
कई रिश्ते कितनी गिरहों में बंधे रह जाते हैं, 
कई रिश्ते साँस नहीं ले पाते,
घुटन में ही जीवन बिता देते हैं। 
आओ, हम हर गिरह को खोल कर, इन्हें खुली हवा में साँस लेने दें 
और मिलकर तय करें बाकि का सफर रिश्तों को निभाकर नहीं, जीकर !

………………………………… 

तुमने बरसों पहले मेरा हाथ पकड़ा और कहा--
"चलो मेरे साथ सपनों की दुनिया में। "
मैंने पूछा --
"सपने मेरे या तुम्हारे ?"
तुम्हारा जवाब  खामोशी से कदम तेज -तेज बढ़ाता रहा 
मैं ,हांफती हुई तुम्हारे साथ चलने की कोशिश करती रही। 
……….................................. 

हाथ बढ़ा कर तुम्हे छूने की कोशिश में मुझे बरसों लगे
और अब जब मुझे लगा कि तुम्हें छू लूंगी,
पा लूंगी तो पाया 
तुम दूर बहुत दूर और दूर होते गए हो 
.………………………………………………… 

तुमने विश्वास दिलाया तो मैंने हिचक का पर्दा उठाया 
और तुम्हें दिखाए ज़ख्म अपने मन के -
कुछ बरसो पुराने कुछ ताजे भी !
तुमने विश्वास दिलाया की मरहम बनोगे तुम 
मेरे दर्द के हमदम बनोगे तुम। 
तुम लौटे तो … पर मरहम लेकर नहीं नश्तर लेकर ! और अब
जब -तब हर बार, बार बार तुम उन्हीं ज़ख्मों में नश्तर चुभोते हो,
क्यूंकि तुम जानते हो की दुखता कंहा हैं !

क़िताब "कुछ फूल अमलतास के " जँहा खुद को खोजने की एक यात्रा है वंही सर्व जी के सामाजिक सरोकारों पर्यावरण के लिए उनकी  संवेदनशीलता ,आध्यात्मिकता और धर्मनिरपेक्षता को भी उजागर करती हैं कुछ कविताओं में इसकी बानगी देखी जा सकती है। 

कौन हूँ मैं ?ये खुद से पूछूँ क्या हूँ मैं ? ये जानना चाहूं 
 चाहो तो तुम मुझे ढूंढ ,मुझसे  मेरी पहचान करा दो तुम !  
  

......................... 


मैं ,मैं तो पानी हूँ ! अंजलि में सहेज रखना मुट्ठी में बांधना नहीं! 
मैं , एक सपना हूँ आँखों में संजो सको तो अच्छा पर आंसू समझ कर 
आँख से गिराना नहीं !

……………………………


खुदा शायद इक जुलाहा है -
जो जिंदगी का ताना -बाना 
बुनता है और उधेड़ देता है। 
……………………… 


मैं अक्सर सपने में देखती हूँ कि,
सब कुछ जल रहा है,
लोग भयभीत से इधर उधर भाग रहे हैं 
जगह शायद कंधमाल या गोधरा या फिर 
दिल्ली सी लगती है। -मैं नंगे पांव बदहवास सी 
भाग रही हूं और एक भीड़ मेरे पीछे कई नंगे हथियार 
लिए चिल्लाती हुई 
"पकड़ लो"
"मार लो "
"छोड़ना नहीं"
"मुसलमान है "
"हिन्दू हैं "
"सिक्ख हैं"
"ईसाई है"

और दूर लॉउडस्पीकर पर 
एक पुरजोश आवाज़ आ रही है 
"एक धर्म -निरपेक्ष और सुरक्षित 
भारत के लिए हमें वोट दीजिए !"

…………………………… 
दिल को झंकझोर देती है इस तरह की कविताएँ और जब आपको सोचने को मजबूर कर दे कोई रचना तो ये ही उसकी सफलता है। अक़्सर कविताएं सांकेतिक होती हैं और उनमें अपने अनुभव अंतर्निहित होते हैं जो भावों द्वारा कविता में परिलक्षित होते हैं। सर्व जी की कवितायें अलग अलग बिम्बों और प्रतीकों से अपने भाव पाठक तक पहुँचाने में समर्थ हैं। 

चलो सखी ……
कुछ सपने देखें,
कभी सांझ में 
कभी दुपहरे।

इनमें तुम कुछ रंग भर देना थोड़े हल्के ,
थोड़े गहरे। 
…………………………… 


कितने सुन्दर शीतल ,भीने अमलतास ने 
फूल बिखेरे !कुछ हल्के और कुछ हैं गहरे एक हंसी से लगें 
सुनहरे !

सच में सर्व जी की ये पुस्तक एक यात्रा ही है जीवन की सच्चाइयों की किसी भीने अमलतास के फूल सी। जिसमें कुछ नरम नाजुक से भावों की सैर लाज़मी हैं। 

इस पुस्तक या सर्व जी की कविताओं के लिए सर्व जी से उनके ईमेल आई डी या फ़ोन नंबर पर संपर्क किया जा सकता है। 



sarawjeetsarv@gmail.com , Mobile No 09899773323 . 

सर्वजीत 'सर्व जी की पुस्तक 'कुछ फूल अमलतास के' मंजुली प्रकाशन ,नयी दिल्ली से प्रकाशित है। 

मंजुली प्रकाशन ,नयी दिल्ली 
पी -४ पिलंजी सरोजिनी नगर ,नयी दिल्ली -११००२३ 
दूरभाष ; 011-26114151 मोबाइल ; 09810667195,09971323436
manjuli_prakashan@rediffmail.com

Monday, July 21, 2014

ये कँहा आ गए हम -2 ………


ओह ! ये तो सचमुच ख़राब हो गया। 
क्या बाबाजी बोला था ना आज ख़राब नहीं करना। 
सच आपसे ऐसी उम्मीद नहीं थी। खैर  
हो गया जो हो गया अब इसे ठीक भी तो करो। 
" आंटी जी क्या करूँ "
ऑटो वाला राजू सर खुजला रहा था मेरे सामने खड़ा होकर 
मैंने बोला देख लो एक बार तुम इंजन खोल कर 
राजू दस मिनट तक लगा रहा 
कभी कोई औजार निकाल कर ले जाता
कभी कोई। 
 उसकी रेगुलर सवारी "मैडम " को लेकर नोएडा ही आये हुए  ऑटो वाले को वो 
मेरे फ़ोन से ही फ़ोन कर रहा था बार बार 
कि वो "मैडम " को छोड़ने के बाद यंहा आ जाये और हमे ग्रेटर नोएडा लेकर जाये 
पर नेटवर्क उसे बात ही पूरी नहीं करने देता था।  
आंटी जी " मैडम का नंबर मिला दो  उनके फ़ोन पर बात करता हूँ इस से 
आखिर बात हो गयी और तय हो गया कि दूसरा ऑटो वाला हमे लेकर जायेगा 
हुम्म  …… कब आएगा कब जायेगा  ............. 
  
मेरा बिलकुल मन नहीं हो रहा था राजू से  ये पूछने का कि ठीक होगा की नहीं 
मैं जाने क्यों ऐसे चुप बैठ गयी थी चांदनी बीच बीच मे पूछ लेती थी "ममा कब जायेंगे स्कूल ?"
मैं चुप क्यूँ हूँ ऑटो वाले पर गुस्सा क्यों नही  कर रही थी?


                                                      
मैं कुछ सोच रही थी फिर वो ही सोच  …… 
मैं विजुएलाइस कर रही थी की देरी से पहुंचे तो चाँदनी कितने  टाइम की क्लास कर पायेगी और कितना 
टाइम बर्थडे सेलिब्रेट करने को मिलेगा।  
न जाऊँ क्या आज ?
वापस चल लूँ?
किसी मॉल में जाकर चांदनी के लिए ड्रेस ले लूँ?
कंही बस आना जाना ही न हो जाये ?
गर्रर्र हुन्न्न 
स्टार्ट हो गया 
आंटी जी स्टार्ट हो गया 
आह क्या बात है इतनी ख़ुशी की क्या बताऊँ 
तो चल राजू जल्दी कर 
आंटी जी पर वो ऑटो वाला आएगा 
उसे फ़ोन कर देना राजू चल 
राजू ने ऑटो को रफ़्तार दी 
और हम संभल कर बैठ गए 
अब तो मै आंटी जी आधे घंटे में पहुंचा दूंगा 
साढ़े दस बज रहे थे 
हम अब ग्रेटर नोएडा की खुली खुली सड़क पर थे
चांदनी के स्कूल में फ़ोन किया तो मैम बोली 
आप आ जाइए हम लोग चांदनी का वेट कर रहे है 
उसका बर्थडे सेलिब्रेट करने के लिए 
मेरी चाँदनी का वेट हो रहा है 
सुन कर हवा ठंडी तो नहीं थी पर ठंडी लगी कैसी 
ख़ुशी हुई नहीं मालूम सो बता भी नहीं सकती। 
स्कूल पहुँच कर चाँदनी का बर्थडे खूब धूम से सेलेब्रेट किया उसके स्कूल वालो ने 
सच कितने अच्छे लोग हैं।
                                           

                     
राजू का ऑटो स्कूल जाने के बाद बंद होने के बाद फिर स्टार्ट नहीं हुआ। 
वापसी से जरा देर पहले जब किन्ही दूसरे पेरेंट्स की गाड़ी में थोड़ी दूर तक लिफ्ट की बात सोचने लगी
तो ऑटो स्टार्ट हो गया। 
हम राजू और ऑटो फिर से 
उसी खुली खुली सड़क पर थे 
चांदनी सो गयी थी 
मैंने हैडफ़ोन लगा लिए थे मोबाइल से सांग्स सुनने का प्रोग्राम था। 
 राजू का एक और काम साथ साथ चल रहा था रास्ते में वो जगह जगह पानी, निम्बू पानी 
पीने और कुछ  खाने के लिए तीन बार ऑटो रोक चुका था। 
पर ऑटो को बंद नहीं करता ऑटो में बैठे बैठे ही दुकानदार को ऑटो बंद हो जाने की दुहाई देता और सामान मंगवाता। 
कितना खाऊ पीर है ये 
राजू अब चल, घर जाकर खाना खाना 
हाँ आंटी जी खाना तो घर ही खाऊंगा 
तो ये क्या खाने से पहले का धोखा भर है पेट को ?
अल्लाह !!
दो बॉटल्स नीम्बू पानी की भरवा कर राजू का ऑटो चल पड़ा 
साईं मंदिर  … 
अओह कितनी भीड़ इस दुपहरी में भी 
राजू भंडारा लगा है 
हाँ आंटी जी 
तू खायेगा ?
न आंटी जी मै नहीं खाता ऐसे 
मैंने सोचा मै तो पहले कितनी शर्म मानती थी में पंगत मे बैठ कर खाने से  एक सहेली  ने सिखाया 
कि कितना मज़ा आता है भंडारे में जीमने में फिर तो हमने साथ खूब भंडारे खाए, पर भंडारे का खाना बेहद स्वादिष्ट होता है आलू पूरी और कद्दू की सब्जी बूंदी का रायता और हलवा आह।  सामने गरमा गरम करारी पूरी उतर रही थी। 
खाना तो अच्छा है राजू  
आप खाओगी आंटी जी रोकूँ?
ना रहने दे चल तू 
और नहीं तो क्या कितनी कैलोरीज़ होंगी इस खाने में। 
इस सड़क के दोनों और फ्लैट ही फ्लैटस बन रहे है बहुत सारे ग्रुप्स लोगो को घर देने का दावा किये हुए हैं 
इस जंगल में घर दे भी दिया तो क्या ?
पर ऐसा नहीं है ,लोगो के रहने आने से पहले यंहा प्रेस वाला, गाड़ी साफ़ करने वाला, ऑटो स्टैंड, किराने  की दुकाने फिर स्टोर्स सब आ चुके होंगे। पहले शहरों में लोग बसते थे, अब पहले  शहर बसते हैँ। 
कितना नकली है न  ....  सोचते हुए अंदाजे से मैंने मोबाइल में गाने लगाने की कोशिश की ऑटो मॉड  पर सांग्स लगा दिए 
हुनं  … मुझे छू रही हैं तेरी गरम साँसे,मेरे रात और दिन बहकने लगे हैं 
हा हा हा गरम साँसे नहीं गरम आँधी  चल रही है यँहा जो की आस पास हो रहे कंस्ट्रक्शन की मिट्टी भी अपने साथ ला रही हैं ,आप भी क्या बात करती हैं मौसमी जी।
                                         
ये सड़कें खूब चौड़ी हैं, बीच मैं डिवाइडर पर भी पेड़ लगे हैं तीन लेन की सड़क है एक तरफ की।  
तीस मीटर की तो होती होगी एक लेन। यानि नब्बे मीटर की तो रोड हो गयी और रोड की साइड में दस मीटर की हरित पट्टी और फिर सर्विस लेन कम से कम दस मीटर की यानि एक सो दस मीटर एक तरफ का और दोनों तरफ मिलाये तो दो सो बीस मीटर इसमें कम से कम तीन मीटर का डिवाइडर भी होगा  यानि दो सो तेईस मीटर काफी खुला है एरिया दोनों तरफ की सोसाइटिस के बीच और पूरे डिवाइडर और हरित पट्टी पर पीपल नीम के पेड़ और बोगन बेलिया लग चुके हैं।
आज से पांच साल बाद ये बड़े हो चुके होंगे यानी आज से पांच साल बाद ये रोड छायादार पेड़ो से ढकी और साथ में बोगन बेलिया की रंगीन लताये फ़ैली होंगी।  सोच कर ही सुकून आ गया। दूसरा सांग शुरू हो चुका है। …  ....... मुझे मिल गया बहाना तेरी दीद का ,कैसी ख़ुशी लेके आया चाँद ईद का। 
 सोच फिर करवट ले रही है इतनी दूर आना क्या सही है ?
ये सब सोचने का ये वक़्त क्या है ?
तुम ये सब सोच कर ही तो इस फैसले पर पहुंची थी। 
हाँ पर आस पास ही कोई स्कूल  ……। 
इच्छाओ का कोई अंत नहीं 
देखे तो थे आस पास के स्कूल कोई हुआ था तैयार एडमिशन देने को चांदनी को ?
और जो मज़बूरी मे कह भी रहे थे वो पहले ही सब हाँ भरवाना चाहते थे कि बस स्कूल में आने देने के अलावा वो चांदनी को कुछ नहीं दे पाएंगे। .... 
पर  ...................... ओ कम आन पारुल …। 
फिर सोचने लगी तुम 
नेक्स्ट सांग 
.... मुझे प्यार की जिंदगी देने वाले कभी गम न देना ख़ुशी देने वाले 
आई ऍम सॉरी मीना  कुमारी जी ऐसा नहीं होता प्यार देना वाला ही ख़ुशी भी देता है और गम भी इतने फालतू लोग नहीं है भगवन के पास की कुछ को आपको सिर्फ ख़ुशी देने को अपॉइंट करे और कुछ को ग़म।  काश आप अपनी निजी जिंदगी में ये बात समझ जाती तो कितनी खुश रहती।

हवा इतनी गरम और तीखी है और ये दुपट्टा ठहर  ही नहीं रहा फेस पर दोनों तरफ से फेस के दुपट्टा लाकर मैंने हल्का सा दांतो में अटका लिया अब बता कंहा जायेगा  बच्चू ?  यू ट्यूब पर "हाउ टू वियर हिज़ाब" वाले वीडियो हैं उन्ही सी सीखना पड़ेगा। 
अब सांग  ............. न जाने क्या हुआ जो तूने छू लिया 
हुन्न अब एन वर्ड वाले सांग्स शुरू हो गए

हेमा मालिनी कितनी खूबसूरत है ना बस ये पहले की मूवीज में पर इतने विग्स क्यों पहनती थी एक्ट्रेसेस
मुझे बिलकुल अच्छे नहीं लगते कम  से कम ऐसे विग्स जो माथे पर साफ़ दिखते हैं।

राजू फिर अपने घर की कोई बात बताने लगा ओह मैंने हूँन हूँन  करना शुरू कर दिया मुस्किल से तो ईयर फ़ोन  एडजस्ट किये हुए हैं मुझे नहीं सुनना इसे।
अगला गाना  …ना झटको जुल्फ से पानी ये मोती फूट जायेंगे …………
अब याद नहीं आ रहा क्या सोचती रही इतनी देर
अगला गाना शुरू हो चुका था

न तो कारवां की तलाश है न तो हमसफ़र की तलाश है
मेरे शोंके खाना ख़राब को तेरी रहगुजर की तलाश है
"बरसात की एक रात" की ये दोनों कव्वालियां एक ये और एक "ये है इश्क़ इश्क़ इश्क़ इश्क़ " दोनों हिंदी फिल्म संगीत की नायब देन हैं जिन्हे संगीत की समझ है, कौन होगा जिन्हें यें पसंद ना होंगी  ....
हुन्न तेरा इश्क़ मे कैसे छोड़ दूँ मेरी उम्र भर की तलाश है  …जो इश्क़ उम्र भर की तलाश हो क्या किसी भी ,किसी भी कारण से वो इश्क़ छोड़ा जा सकता है ? क्या इश्क़ किया जाता है या हो जाता है या शिद्दतपसंद लोगो की आदत भर है ये। जिन्हे इश्क़ की आदत होती है वो बस आदत से मजबूर जगहों से , लोगो से ,सामानों से इश्क़ करते ही रहते हैं। क्या ये इश्क़ है ? मेरा रोज इतनी दूर चल कर आना ? नहीं  .... बेवक़ूफ़ी है

क्यूँ ? क्यूँ क्या ? कंही घर के आस पास  …बच्चे माँ बाप से पढ़ते हैं स्कूलों से नहीं ,पर स्कूल भी जरुरी है
माहोल मिलता है दूसरे लोग मिलते हैं हर वक़्त माँ साथ रहती है उसका तो एडवांटेज लेते हैं बच्चे।

कितनी कुव्वत  रखता है संगीत भी हमारे फैसलों को चैलेंज करने की और उन्हें दिशा देने की भी।

नया गाना  ………… नादान परिंदे घर आ जा, क्यूँ देश बिदेश फिरे मारा ,हाल  बेहाल थका हारा  ....
सही ही तो है ये नादानी कब तक चाँदनी भी थक जाती है,  कल से नहीं आऊँगी ,कुछ और देखूँगी।घर भी आने वाला था मन बहुत उदास हो चुका  था तभी बहुत जोर जोर से ढोलक बजने की आवाजे आई एक  दम लक्ष्मीकांत  प्यारेलाल के संगीत वाली ढ़ोलक  साथ में पानी के छलकने की आवाजें कि जैसे कोई पतवार खे रहा हो नदी में।  कँहा से आ रही है आवाजें ?
कंहा से आएँगी  मोहतरमा आपके कानो से आ रही हैं
नया गाना शुरू हो चुका है
आह मेरा बहुत बहुत पसंद का ये कोरस हो हो होअ हो होअ  हो  हो हो

नदिया चले चले रे धारा ,तुझको चलना होगा ,तुझको चलना होगा
                                                   
   

आह दिल में चलने लगी वो सारी  पानी की लहरे जिनके किनारे राजेश खन्ना और शर्मीला टैगोर जी बैठे हैं  ....
मैं क्यूँ न जाऊँ कल क्यूँ करूँ और स्कूल्स की शॉपिंग ?
क्या एक बार सोचा नहीं था तूने खूब ?
हाँ सोचा था न सोच कर ही तो फैसला लिया था।  तो अब ? अब रुकने की सोची भी क्यूँ?
गाना  ....... जीवन कंही भी ठहरता नहीं है आंधी से तूफां से डरता नहीं है
                 तू न चलेगा तो चल देंगी राहें मंजिल को तरसेंगी तेरी निगाहें
                 तुझको चलना होगा ,तुझको चलना होगा
तो मुझे ही क्या ड़र आंधी चाहें गरम हवा की हो या ठंडी की इससे पहले की राहें चल दे चलना ही होगा
चाँदनी के लिए जो सबसे सही है वो ही हो रहा है उसकी जरुरत अभी ये ही है
मेरे साथ कुछ भी गलत बाबाजी और चाँदनी के साथ कुछ भी गलत उसकी माँ कर ही नहीं सकती।कोई भी माँ नहीं कर सकती।
  पार  हुआ वो रहा जो सफर में ,जो भी रुका घिर गया वो भंवर में
  नाव तो क्या बह जाये किनारा बड़ी ही तेज़ समय की है धारा
घर आ गया
आंटी जी कल भी चलना है ?
हां राजू कल आ जाना
तुझको चलना होगा  ,तुझको चलना होगा .............

                                                          पारुल सिंह



Saturday, July 12, 2014

ये कँहा आ गए हम-1 .....



जो गुजरे हम पे वो कम है
तुम्हारे गम का मौसम है
गम का कोई मौसम नहीं होता गम आता है तो किसी भी मौसम को गम का मौसम बना देता है वैसे भी आजकल दिल्ली मे तो गर्मी का मौसम है,भीषण गर्मी पड़ रही है। जुलाई के महीने मे भी  ऐसी सूखी गर्मी पड़ा करती है भला ? अरे जुलाई मे तो भीगी भीगी गर्मी, कुछ ठंडी ठंडी गर्मी,कुछ उमस भरी गर्मी हुआ करती थी। ग्लोबल वार्मिंग बढ़  गयी है,धरती आग का गोला बन जानी  है एक दिन। लोगो को पर्यावरण की परवाह ही नहीं। इतना प्रदूषण,जंगलों का काटना सब अपने लिए ही खड्डे खोद रहे हैं हम।
 खड्डे तो इंसान इंसानो के लिए भी खोदता है,उस मे चाहे एक दिन खुद ही गिर पड़े कोई परवाह नहीं। बस कोई पडोसी या रिश्तेदार बातों मे,रहन सहन मे, हमसे आगे न निकल जाये। निकला तो वो ही दुश्मन हमारा हमसे पीछे जो है वो हमारी आँख का तारा,वो हमे सबसे प्यारा। बड़ा अच्छा  लगता है उससे मिलना और बात करना। अपनी  अक़्लमंदी और रुतबे की धोंस बुद्धिजीवी वार्तालाप के रूप  मे उस पर झाड़ कर। 
क्या हुआ ??  सही सही सी ही हैं सारी बातें  जो मैं कह रही हूँ पर तारतम्य कुछ भी नहीं ? कंही से कंही पहुँच रही हूँ ? हाँ,  ये ही बताना चाह रही हूँ कि हमारे मन मे विचार एक डाल  से दूसरी डाल  पर फुदकने मे चिड़िया से भी काम वक़्त लेता है। और जो विचार हमारे मष्तिष्क मे चल रहा होता है बस वो ही  विचार उस वक़्त संसार का सबसे गंभीर,आवश्यक तथा ज्वलंत विचार होता है ,पर जाने  क्यों अगले ही क्षण   वो ही  विचार विचार करने लायक भी नहीं रहता , ये गंभीर ,आवश्यक तथा जवलंत विचार का हार  किसी दूसरे विचार के गले मे जा गिरता है। हम एक दिन  मे कितनी बाते सोचते हैं  समझदार मान कर स्वयं को कितने सांसारिक और पारिवारिक विषयो पर खुद को सही और दुनिया को फजूल साबित कर आत्ममुग्ध हो लेते है और  अपना कई किलो आत्मविश्वास इन विचारो से ही घटा बढ़ा लेते हैं।
जिन विचारों का हमारे जीवन से और विशेषकर किसी खास पल या दिन से कोई सीधा सरोकार नहीं होता वो ही बाते कितना  अच्छा महसूस करा देती हैं हमें  और कई  बार ऐसा  धोबी पाट  मारती हैं कि क्या दारा सिंह मारते होंगे। जिस बात से हमारा लेना एक ना देना दो वो ही बात हमे नकारात्मक और सकारात्मक दोनों तरह से प्रभावित करती है 
मैं अपने कल के अनुभव से बताऊँ तो क्या क्या नहीं सोचा मैंने और क्या क्या उसके असर मेरे जीवन मे लिए हुए बड़े से बड़े और छोटे से छोटे फ़ैसले पर ही प्रश्नचिन्ह लगाते रहे तब  भी जब मैं ये बात समझ कर मन मे आये विचारों को रोकने  और टोकने मे भी लगी रही।
मैं अपनी छोटी बेटी  चाँदनी को रोज ग़ाज़ियाबाद से ग्रेटर नोएडा  स्कूल लेकर जाती  हूँ उसका स्कूल खत्म होने तक वंही इंतज़ार करती हूँ, आने जाने के लिए कभी गाड़ी कभी ऑटो का इस्तेमाल करती हूँ,कभी गाड़ी? हाँ जब पतिदेव को गाड़ी की आवश्यकता  न हो तो गाड़ी वर्ना ऑटो (कौन है जिसे इस गर्मी मे गाड़ी की  आवश्यकता  न हो ? )
कल सुबह चांदनी को स्कूल लेकर जाने के लिए निकलने मे दस मिनट लेट थी कोई नई बात नहीं थी पर रोज की  भी नहीं थी। ऑटो वाले के नीचे से दो फ़ोन आ चुके थे ,इसे  जल्दी क्या है भला मैं चाहे एक घंटा लेट निकलूँ ?इसे तो एक मुस्त किराया इसका मिलेगा ही लुढ़कते पुड़कते हम दोनों  माँ बेटी पहले से ही स्टार्ट ऑटो मे बैठ गए
क्या टाइम हो गया ऑन्टी जी ?
नौ चौबीस हुए हैं। 
नौ चौबीस ?हे भगवान आज मैं कुछ ज्यादा ही लेट नहीं हो गई ,दस बजे पहुँचना है एक घंटे का रास्ता है ,अरे तो क्या हुआ कल से ही तो स्कूल दस बजे का हुआ है साढ़े  दस भी पहुँच गयी तो चलेगा। हे साढ़े दस क्यूँ ? अभी नौ  चौबीस हुए हैं ,दस चौबीस पर पहुँच जायेंगे सिर्फ इक्कीस मिनट लेट। 
अभी पौने दस तो नहीं बजे ना ? ये राजू था ऑटो ड्राइवर 
नहीं अभी तो पंद्रह मिनट हैं लगभग पौने दस बजने मे 
भाई तो ऑटो ड्राइवर है पर इतना तो मालूम है की जब नौ चौबीस बजते है तो पौने दस नहीं बजते  (मन मे )
वो एक और मैडम जाती हैं  यँहा से नोएडा पौने दस बजे मै सोच रहा था उन्हें भी ले लेता 
अभी तो नहीं ले सकता ना पौने दस बजने मे तो टाइम है। मुझे समझ ही ना आया कि ये पूछ रहा है या मुझे बता रहा है 
मैं चुप रही मुझे कुछ और ही सोचना आ रहा था ये पूरे मुँह पर दुपट्टा लपेट कर जो निकलती हैं लड़कियां ये कैसे करती हैं 
मैं दुपट्टे के साथ बिजी थी 
आंटी जी उन्हें नहीं ले सकता ना ?
नहीं देर हो जायेगी हम तो पहले ही लेट हैं "मुझे बोलना ही पड़ा 
हाँ वो ही तो मैं कह रहा था 
मैं : (मन मे )आये हाये पैसे तो  पूरे मैं दूँगी, इतनी लम्बी सवारी मिल गयी तो भी ये अपने रेगुलर कस्टमर को भी नहीं छोड़ना चाह रहा
दो दो कमाई चाहिए 
वैसे क्या गलत रहा था वो मैं देर मे थोड़ी और देर कर लेती तो मेरा क्या बिगड़ जाता 
उसे क्या मतलब कि मुझे टाइम से जाकर क्या करना है और मुझे क्या मतलब कि उसे ज्यादा रूपये मिल जाये 
हम सब अपनी अपनी तरह से दुनिया चलाने की  पूरी कोशिश कोशिश करते हैं दुनिया चलती नहीं वो अलग बात ठहरी और  कोशिशे रूकती नहीं ये भी सत्य है।
                     
इस रास्ते से लूँ आज इंदिरापुरम वाले ?
देख ले 
आप कह रही थी कल वाला  रास्ता शुरू मे थोड़ा ख़राब है 
हाँ है तो 
बताओ मैडम किस रस्ते से चलूँ ?
देख ले ,इस से चल ले 
अरे आप बताओ न मैडम मै तो खुद ही फ़ैसला नहीं कर पा रहा हूँ      
इंदिरापुरम से ही चल देर मे और देर सही रास्ता तो सही है
ट्रैफिक मिलेगा मैडम
हुम्म्म
वैसे ऑटो तो निकल ही जायेगा ट्रैफिक मे इस्कूटर के लिए क्या ट्रैफिक राजू बोला
चल तो फिर इधर से ही चल
झुँझलाहट हो रही है  देख नहीं रहा मैं खाली नहीं बैठी हूँ एक हाथ से उड़ते दुपट्टे को मुँह पर बाँधने की कोशिश आँखों पर लगाये हुए सन ग्लासेस से बचा कर एक हाथ से चाँदनी को थामना कि कंही ये अपना हाथ पैर  ना निकाल ले ऑटो से बाहर और बंध जायेगा बस फिर दुपट्टा मेरा
इंदिरापुरम के रास्ते से ऑटो बढ़ चला ट्रैफिक तो था पर इस्कूटर को क्या ट्रैफिक ?
राजू ने ऑटो नोएडा मे से निकल कर जाने के लिए  मोड़ने की बजाये सीधे ले लिया
हुम्म्म ये ऑटो वाले बड़ी नाप तोल करते है रास्तो की जिसे ये शार्ट कट मानते हैं कई बार वो होता नहीं शार्ट कट
ये अब सीधे यामहा मोड़ पर निकलेगा
निकल मुझे क्या
राजू पुरे ट्रैफिक से अब तक फ़ोन पर बाते कर रहा
है पौने दस वाली मैडम के लिए उसने जुगाड़ कर ही दिया आखिर अपने किसी साथी ऑटो वाले को  भेज कर
हाँ भई तू तो करेगा ही डेली  कस्टमर को थोड़े ही हाथ से जाने देगा
ऑटो बार बार झटके खाने लगा था स्पीड भी कम थी
जाने क्या हो गया आज इसे
हर झटके के साथ राजू बोलता
मैं सोच रही थी ऑटो ख़राब नहीं हो सकता हम पहुँच ही जायेंगे ग्रेटर नोएडा
अरे ये वाली बिल्डिंग  . .  ये ही रास्ते से तो निकली थी मैं जब पहली बार  ग्रेटर नोएडा स्कूल से आते हुए रास्ता भटक गयी थी
मैं कितनी बार गलत रास्ते  लेती हूँ ना
पर ग़लत रास्ते की अच्छी बात ये है कि उस पर चलते ही पता लग जाता है कि रास्ता गलत है ना
एक बार तो मेरठ का रास्ता नहीं मिला था  एक बार  . . . कुल दस बार भूली मैं रास्ते हुम्म पता नहीं
ऑटो झटके खा रहा है
ये एक बार तेज सा एस्केलेटर ले ले तो फिर झटके नहीं खायेगा
ग्रेटर नोएडा वाला खुला रास्ता आ जाये न एक बार
ऑटो ख़राब हो गया तो?
इसे अभी मना  कर दूँ क्या
दूसरा  मंगा लूँ
देर हो जाएगी
हे भगवान आज न ख़राब कर आज तो जाने दे आज चाँदनी का जन्मदिन है कितनी उत्साहित है वो स्कूल मे जन्मदिन मनाने को
 चॉको पाई मे उसकी जान अटकी रहती है आज उसी का बचा हुआ डब्बा ले आई है वो अपने साथ के बच्चों को देने को  …मेरा प्यारा बच्चा 
मैंने उसे खुद से सटा कर बैठा लिया 
तू पहुँच गया मैडम को लेकर?
राजू फिर फ़ोन पर था
ड्राइव करते हुए फ़ोन करता है 
 मना कर दूँ क्या 
पहुँच जाने  दे मैडम को ऑफिस फिर कर देना 
ये फ़ोन ना करता तो काफी तेज चलता अब तक यामहा चोंक पहुँच जाते हम यामहा चौंक पर बुद्ध भगवान की बड़ी बड़ी मूर्तियां हैं 
सब मायावती ने बनवाया है 
क्यूँ बनवाया 
अब कुछ तो बनवाती ही 
 ये न बनवाती तो क्या बनवाती 
गर्र गर्रर्र गररर्र। .... झटका। . सन्नाटा 
ऑटो बंद 
नोएडा सेक्टर 63 
टाइम 10 बज कर 12  मिनट ……………    

क्रमश:   ………………………
--
parul singh

Wednesday, July 9, 2014



तुम संग भी गुमसुम 


तुम बिन भी  गुमसुम  



 रहती हूँ।


 तरसते थे जिसके दिन  रात



 तुम्हे कहने सुनने को



 मै वही हूँ





स्वयं से पूछती रहती हूँ।


अब दिल तुमसे कुछ कहने को 


कुछ सुनने को 


करता ही नहीं 




 दिल का भी दिल भर गया होगा शायद 



जैसे ....




 तेरे प्यार का इंतजार अब और करने से 



मेरा दिल भर गया है। 


               पारुल सिंह