Thursday, November 5, 2015

बेटी को लेकर एक बार गंगाराम हॉस्पिटल गयी थी | डाक्टर का कमरा खोजते हुए मैं गलती से पीडियाट्रिक कैंसर वार्ड में पहुँच गई | कोरीडोर के दोनों तरफ़ कमरे थे | हर कमरे में ६-८ बैड, हर बैड पर एक बच्चा | पास में एक माँ | गले में , नाक में नालियां लगे हुए बच्चे , बालों के बगैर बच्चे, नन्हें नन्हें, गोल मोल, दुबले-पतले बच्चें | बच्चों के साथ कुछ माएं भी बिना बालों के | एक दम गंजी माएं, कोई गोद में खिलाती | कोई गोद में लिए बैठी अपने बच्चे को |  ज़िद करते बच्चें हर ज़िद पर रोकती माएं | दौड़ने की ज़िद एक बच्चे के लिए कितनी छोटी होती है ये हर माँ का सपना होती है | दौड़ने की ज़िद पर रोकती माएं, रोते बच्चें | गुलगुली करती माएं, हँसते बच्चें | चूमते बच्चे निहाल होती माएं |
ये सब एक ही कमरे में नहीं था | क़दम-दर-क़दम बहुत धीरे चल रही थी मैं, पर एक भी बैड का हाल जाने बिना आगे नहीं बढ़ी | कुछ साफ़ दिख नहीं रहा था धुंधला, सफ़ेद सा था सब कुछ, आज तक भी स्मृति में ऐसा ही है | आँखों में आंसू भरे हुए थे | पर बदल दिया उस लम्हें ने मुझे, मेरी सोच को |
 कोई लम्हा अगर छू कर गुजर जाना चाहता है आपको तो छू लेने दीजिए उसे | गुजर जाने दीजिए उसे अपने जिस्म से रूह तक को छूते हुए | वो लम्हा जो अहसास देना चाहता है उसे महसूस होने दीजिए अपने जिस्म और रूह के हर रेशे को | बदल देने दीजिए उसे आपकी सोच, नज़रिए और जिंदगी को | कभी-कभी ख़ुद को ढीला एक दम हल्का छोड़ देना चाहिए ज़िंदगी के हाथों में | हवा से हल्का हो उड़ जाने के लिए, पत्ते सा सूखा हो बह जाने के लिए | ये ही वो पल होता है जो आपको आपके कुछ और नजदीक लाकर आप से मिलाता है | ये ही होता है वो लम्हा जो बहुत से पुराने सवालों का जवाब होता है | ये ही होता है वो लम्हा जो सोच के चोराहें पर खड़े रहने की पीड़ा से मुक्ति देता है |
हम अपनी समझदारी, दुनियादारी, और लीक पर चलने के सदके ऐसे न जाने कितने पल आने,जाने देते हैं, अपनी ज़िंदगी में वरना नकारात्मकता से भरे दिल की लिए, सुबह के सैर पर काँटों में हँसते हुए एक फूल का इशारा ही काफी नहीं है क्या? पर नहीं ! हमें तो “तो क्या” कहने की आदत है |
चलिए ये ही सही | इस “तो क्या” को ही बोलना है तो बोलते हैं, बस जगह बदल लेते हैं थोड़ी सी |  
फूल काँटों में हंस रहा है तो क्या ये तो होता ही है उसे तो वैसा करना ही है, की जगह ये सोच लें ... ये नन्हा सा फूल काँटों में भी हंस रहा हैं, अपना रंग और खुश्बू भी नहीं छोड़ रहा | “तो क्या” मैं अच्छा भला इंसान जिसे भगवन ने इतनी नैमतों से नवाज़ा है | मैं क्या दर्द में मुस्कुरा नहीं सकता ? फूल की तरह काँटों में रहते हुए खुश्बू बाँटने की तरह मैं दुखी होते हुए भी ख़ुशी बाँट नहीं सकता ?
“तो क्या” के कुछ और इस्तेमाल ...... मेरा घर छोटा है “तो क्या”, मेरा बच्चा स्पेशल है “तो क्या” ..... मुझे कोई दुःख है “तो क्या” ?
दुःख मनाने की आदत है | जिनके बच्चें नहीं हैं, वो कहते हैं कि हम दुखी हैं | जिनके हैं होकर बिगड़ गए वो कहते हैं हम सबसे बड़े दुखी हैं | जिनके होकर गुजर गए वो कहते हैं इस से बड़ा दुःख नहीं |
जिनके पास रुपया पैसा है वो दुखी, जिनके पास नहीं है वो दुखी | भाई मेरे अम्बानी से जाकर पूछो कोई न कोई परेशानी उसे भी होगी | सो दुःख नाम की कोई चीज नहीं होती, ये होता नहीं मनाया जाता है | जिन हालत पर अपना बस ही नहीं उन का दुःख क्या मनाना ?
हाँ तो उस दिन उस एक लम्हें ने बदल दिया मुझे | क्यूंकि मैंने महसूस होने दिया ख़ुद को वो सब | न वक़्त की परवाह की न सोच की | वो आंसू मेरे आख़िरी आंसू थे अपने बच्चे के स्पेशल चाइल्ड होने पर | वो बच्चें जो उस वक़्त अपनी सब से कम क्षमताओं और उर्जाओं में थे मुझे ऊर्जा दे रहे थे | वो मेरा सबल बन रहे थे | मेरी उंगली पकड़ लेकर चल दिए थे मुझे | जैसे कह रहे हों ,” आंटी चांदनी को ये तकलीफ तो नहीं झेलनी पड़ रही ना” | ,” आंटी मुझे बालों में पिन लगाने का बड़ा शौक़ है, देखो तो मेरे बाल चले गए, पर आप चांदनी को पिन लगाया करोगे ना | उसकी चोटियाँ गूंथा करोगे ना ?”
मुझे नहीं मालूम उन में से कितने बच्चें ठीक होकर घर वापस गए | मेरे लिए वो सारे ठीक होकर घर चले गए | पर जिस उम्र में हम एक इंजेक्शन तक से डरते थे, कीमोथेरेपी झेल- झेल कर अपनी उम्र से काफी आगे आ चुके वो बच्चें मेरे प्रेरणा-स्रोत हैं | हर दम मेरे साथ हैं | कभी एक-दो बार क़दम डगमगाये शुरू में तो उन्होंने मुझे उंगली पकड़ कर उसी कोरिडोर में घुमा दिया | अब तो खैर ये नौबत नहीं आती |
अपनी ऊर्जा और प्रेरणा का स्रोत आपको ख़ुद खोजना होगा | ये बच्चे ही चाहिए तो गंगाराम जा सकते हैं | वरना तो ज़िंदगी बिखरी पड़ी है हर तरफ़ देखिये, सीखिए, उठिए और चलिए | आंसू तो रोकने होंगे अपने आख़िरी आंसू का कारण आपको ख़ुद खोजना होगा | कोई थाली में परोस कर नहीं देगा | और जब तक ख़ुद पर ये दया करोगे की कोई आये और हमे कारण दें, तब तक मिलेगा भी नहीं |
रोना बुरा नहीं है रो लो | खूब रोओ | जो जो बाते कह कर जिस जिस भगवन को जिस-जिस तरह से कोस कर रो सकते हो रो लो जी भर कर | इतना रो लो की फिर कभी आँख में आंसू न आयें | पर जिस दिन चुप हो जाओ उस दिन के बाद तुम से बहादुर कोई ना हो |
माँ-बाप से ज्यादा बच्चे का भला कोई नहीं कर सकता, पर पहले स्वीकार कर लो कि ये हो गया हमारे बच्चे और हमारे साथ | ये ग़लत हुआ या सही इस पर बात बाद में | पर पहले मान लो कि अब हम बदली न जाने वाली एक स्थिति में हैं, जो समाज की सोच के हिसाब से दुःख है हमारे लिए नहीं | अब? अब क्या ?
जैसे कहते हैं ना कि कोई काम शुरू कर लिया तो मानिये की पचास प्रतिशत हो गया | वैसा ही यंहा भी है | आपने स्वीकार कर लिया तो आपको कोई नहीं रोक सकता अपने बच्चे के लिए अच्छे से अच्छा करने के लिए | रुकावटें तब तक ही हैं जब तक हम स्वीकार नहीं करते | सही भी तो है जब हम नहीं मानते की हमे कोई बीमारी है तो ना उसके लिए डॉक्टर खोजते ना दावा लेते | ये परिवार और समाज की शर्म हैं जो हमे ये स्वीकार करने से रोकती है | मानती हूँ जिस समाज में, जिस मानसिकता के साथ हम सालो-साल रहते आये हैं उसे रातो-रात बदलना मुश्किल है | पर ये तो ज़िंदगी के हर दुःख से जुडी सच्चाई है |
अगर घर में आग लगी है तो हम उसे छुपाते थोड़े हैं | बचाव के लिए पुकारते हैं | उस आग में हम बहुत सी चीजों से वंचित हो जाते हैं जो औरों के पास तो हैं | फिर भी हम ख़ुद को पुनः स्थापित करते हैं | ये ही यंहा भी करना है | आपको बस लोगो की सहानुभूति का पात्र बने रहना है या संभल कर ख़ुद को पुनर्स्थापित करना है, चुनाव आपका है | एक बात की गारंटी मुझ से ले लीजिये जब तक आप नहीं चाहेंगे आपके बच्चे और आप पर कोई दया नहीं दिखा सकता | हमारा व्यवहार ही लोगो का व्यवहार तय करता है | आप हौसले से भरे हैं तो लोग उल्टा आप से प्रेरित ही होंगे आप एक मिसाल बन उभरेंगे |
ये आपका एटीटूयड है अब जो जीवन भर आप और आपके बच्चे की खुशियां निर्धारित करेगा | पहली बात तो लोगो से हमे कोई दुश्मनी नहीं बांधनी है | क्या बुरा मानना उसका जो नादान है,अंजान है | कुछ वक़्त पहले तो आप भी उन में से एक ही थे | बस आप ये कर सकते हैं कि जितना हो सके जागरूकता फैलाएं एक सलीके दार व्यवहार के साथ सब सच-सच बताएं और सहज रहें, खुश रहें |
                                                                पारुल सिंह     

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