Tuesday, July 25, 2017

#आजादीबनामआराम1 देक्खो आजादी चाहने वाली बहनों आजादी तो मर्दो को भी चाहिए, सुबह काम पर  जाना और शाम को लौटना फिर घर बाहर के भी सौ काम। यानि के आजादी तो उनके पास भी नही,तो जो खुद आजाद नही वो तुम्हें क्या आजादी देगा? सो ये तो क्लियर हुआ कि आजादी उससे नही माँगनी। दूसरी बात आजादी फ्री नही मिलती इस दुनिया में कुछ भी फ्री नही। कुछ तो दांव पर लगाना होगा। और चलो तुमने कुछ दांव पर लगा भी दिया और ना आजादी मिली ना वो वापस मिला जो दांव पर लगाया था तो? माया मिली ना राम बनाओगी क्या अपनी ज़िन्दगी को? पहले बेस तैयार करो। अपने कम्फर्ट जॉन से निकलना होगा। अपने फैसले खुद लोगी तो परिणाम भुगतने को तैयार रहना होगा। सो तन मन और बहुत खास चीज धन से तैयार होकर ही कदम उठाना चाहिये।
बहुत आसान है विक्टम बन कर रहना।बहुत आसान है कहना ये करने नही देते,ये मना करते हैं,सास इजाजत नही देती,ये सब कह कर विक्टम बन लो बेचारी बन लो और घर रसोई निपटा कर खरांटे मार के सो जाओ। के जी हमारे साथ जो हुआ वो हमने तो किया ही नही।हम बेचारी।
कहीं ऐसा तो नही के सास नौकरी पर जाने की इजाजत दे दे और तुम सुबह से शाम अॉफिस और घर के काम कर याद करो कि 11 बजे काम निपटा कर 2 घंटे की नींद भी ले लेती थी,ये क्या झगड़ा मोल ले लिया।
सो पहले बैठो,सोचो ठंड़े दिमाग से कि क्या तुम्हें सचमुच कोई आजादी चाहिए भी। या जो है जैसे है सब तुम्हारे मन मुताबिक है।
तुम वो एक्सट्रा एफर्ट कर के कुछ एक्सट्रा पानी भी चाहती हो या नही।
ये ही बात समाज के स्तर पर अधिकार, हक नारी विमर्श,स्त्री विमर्श पर लागू है। जो समाज खुद चार लोगों से डरा रहता है जिसका मूल वाक्य और डर  ही ,"लोग क्या कहेंगे" है। वो तुम्हें क्या हक देगा। मांगना नही हक को ओढ़ना पहनना होगा...... क्रमशः
बाकी कल। मेरा भी डिनर का वक्त हो गया।  ग्यान बाँटने के अलावा घर के काम भी करने होते है मुझे :-)
पारूल सिंह